Sunday, 19 March 2023

Shiva Pratah Smaran Stotram in Sanskrit


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| श्री शिव प्रातः स्मरण स्तोत्रम् ||

प्रातः स्मरामि भवभीतिहरं सुरेशं 
गङ्गाधरं वृषभवाहनमम्बिकेशम् |
खट्वाङ्गशूलवरदाभयहस्तमीशं 
संसाररोगहरमौषधमद्वितीयम् ||||


प्रातर्नमामि गिरिशं गिरिजार्धदेहं 
सर्गस्थितिप्रलयकारणमादिदेवम् |
विश्वेश्वरं विजितविश्वमनोSभिरामं
संसाररोगहरमौषधमद्वितीयम् ||||


प्रातर्भजामि शिवमेकमनन्तमाद्यं
वेदान्तवेद्यमनघं पुरुषं महान्तम् |
नामादिभेदरहितं षड्भावशून्यं
संसाररोगहरमौषधमद्वितीयम् ||||


प्रातः समुत्थाय शिवं विचिन्त्य श्लोकत्रयं येSनुदिनं पठन्ति |
ते दुःखजातं बहुजन्मसंचितं हित्वा पदं यान्ति तदेव शम्भो: ||

Sunday, 12 March 2023

श्री काशी विश्वनाथ मंगल स्तोत्र | Shri Kashi Vishvanaath Mangal Stotra


श्री काशी विश्वनाथ मंगल स्तोत्र | Shri Kashi Vishvanaath Mangal Stotra

श्री काशी विश्वनाथ मंगल स्तोत्रम संस्कृत भाषा में रचित एक दिव्य स्तोत्र है, जो कि भगवान शिव के काशी विश्वनाथ रूप को समर्पित है l इस स्तोत्र के नियमित पाठ से गम्भीर से गम्भीर रोगों से मुक्ति मिलती है। इसके प्रभाव से विवाह सम्बन्धी समस्याओं निदान, सन्तान सुख, शत्रुओं पर विजय व धन-धान्य की प्राप्ति होती है l

श्री काशी विश्वनाथ मंगल स्तोत्र

|| अथ श्रीविश्वनाथमङ्गलस्तोत्रम् ||

गङ्गाधरं शशिकिशोरधरं त्रिलोकी-
रक्षाधरं निटिलचन्द्रधरं त्रिधारम् |
भस्मावधूलनधरं गिरिराजकन्या-
दिव्यावलोकनधरं वरदं प्रपद्ये ||||

अर्थ :- गंगा एवं बाल चन्द्र को धारण करने वाले, त्रिलोक की रक्षा करने वाले,मस्तक पर चन्द्रमा एवं त्रिधार (गंगा) -को धारण करने वाले, भस्म का उद्धूलन करने वाले तथा पार्वती को दिव्य दृष्टि से देखने वाले, वरदाता भगवान शंकर की मैं शरण में हूँ ll

काशीश्वरं सकलभक्तजनातिहारं
विश्वेश्वरं प्रणतपालनभव्यभारम् |
रामेश्वरं विजयदानविधानधीरं
गौरीश्वरं वरदहस्तधरं नमामः ||||

अर्थ :- काशी के ईश्वर, सम्पूर्ण भक्तजन की पीडा को दूर करने वाले, विश्वेश्वर, प्रणतजनों को रक्षा का भव्य भार धारण करने वाले, भगवान राम के ईश्वर, विजय प्रदान के विधान में धीर एवं वरद मुद्रा धारण करने वाले, भगवान गौरीश्वर को हम प्रणाम करते हैं ll

गङ्घोत्तमाङ्ककलितं ललितं विशालं
तं मङ्गलं गरलनीलगलं ललामम् |
श्रीमुण्डमाल्यवलयोज्ज्वलमञ्जुलीलं
लक्ष्मीशवरार्चितपदाम्बुजमाभजामः ||||

अर्थ :- जिनके उत्तमांग में गंगाजी सुशोभित हो रही हैं, जो सुन्दर तथा विशाल हैं, जो मंगल स्वरूप हैं, जिनका कण्ठ हालाहल विष से नीलवर्ण का होने से सुन्दर है, जो मुण्ड की माला धारण करने वाले, कंकण से उज्ज्वल तथा मधुर लीला करने वाले हैं, विष्णु के द्वारा पूजित चरण कमल वाले भगवान शंकर को हम भजते हैं ll

दारिव्र्यदुःखदहनं कमनं सुराणां
दीनार्तिदावदहनं दमनं रिपूणाम् |
दानं श्रियां प्रणमनं भुवनाधिपानां
मानं सतां वृषभवाहनमानमामः ||||

अर्थ :- दारिद्र्य एवं दुःख का विनाश करने वाले, देवताओं में सुन्दर,दीनों की पीडा को विनष्ट करने के लिये दावानल स्वरूप, शत्रुओं का विनाश करने वाले, समस्त ऐश्वर्य प्रदान करने वाले, भुवनाधिपों के प्रणम्य और सत्पुरुषों के मान्य वृषभवाहन भगवान शंकर को हम भली भाँति प्रणाम करते हैं ll

श्रीकृष्णचन्द्रशरणं रमणं भवान्याः
शशवत्प्रपन्नभरणं धरणं धरायाः |
संसारभारहरणं करुणं वरेण्यं
संतापतापकरणं करवै शरण्यम् ||||

अर्थ :- श्री कृष्णचन्द्रजी के शरण, भवानी के पति, शरणागत का सदा भरण करने वाले, पृथ्वी को धारण करने वाले, संसार के भार को हरण करने वाले, करुण, वरेण्य तथा संताप को नष्ट करने वाले भगवान शंकर की मैं शरण ग्रहण करता हूँ ll

चण्डीपिचण्डिलवितुण्डधृताभिषेकं
श्रीकार्तिकेयकलनृत्यकलावलोकम् |
नन्दीशवरास्यवरवाद्यमहोत्सवाढ्यं
सोल्लासहासगिरिजं गिरिशं तमीडे ||||

अर्थ :- चण्डी, पिचण्डिल तथा गणेश के शुण्ड द्वारा अभिषिक्त, कार्तिकेय के सुन्दर नृत्यकला का अवलोकन करने वाले, नन्दीश्वर के मुखरूपी श्रेष्ठ वाद्य से प्रसन्न रहने वाले तथा सोल्लास गिरिजा को हँसाने वाले भगवान गिरीश की मैं स्तुति करता हूँ ll

श्रीमोहिनीनिविडरागभरोपगूढं
योगेश्वरेशवरहदम्बुजवासरासम् |
सम्मोहनं गिरिसुताञ्चितचन्द्रचूडं
श्रीविश्वनाथमधिनाथमुपैमि नित्यम् ||||

अर्थ :- श्री मोहिनी के द्वारा उत्कट एवं पूर्ण प्रीति से आलिंगित, योगेश्वरों के ईश्वर के हृत्कमल में रास के द्वारा नित्य निवास करने वाले, मोह उत्पन्न करने वाले, पार्वती के द्वारा पूजित शशिशेखर, सर्वेश्वर श्री विश्वनाथ को मैं नित्य नमस्कार करता हूँ ll

आपद् विनश्यति समृध्यति सर्वसम्पद्
विघ्नाः प्रयान्ति विलयं शुभमभ्युदेति |
योग्याङ्गनाप्तिरतुलोत्तमपुत्रलाभो
विश्वेश्वरस्तवमिमं पठतो जनस्य ||||

अर्थ :- इस विश्वेश्वर के स्तोत्र का पाठ करने वाले मनुष्य की आपत्ति दूर हो जाती है, वह सभी सम्पत्ति से परिपूर्ण हो जाता है, उसके विघ्न दूर हो जाते हैं तथा वह सब प्रकार का कल्याण प्राप्त करता है, उसे उत्तम स्त्री रत्न तथा अनुपम उत्तम पुत्र का लाभ होता है ll

वन्दी विमुक्तिमधिगच्छति तूर्णमेति
स्वास्थ्यं रुजार्दित उपैति गृहं प्रवासी |
विद्यायशोविजय इष्टसमस्तलाभः
सम्पद्यतेऽस्य पठनात् स्तवनस्य सर्वम् ||||

अर्थ :- इस विश्वेश्वर स्तव का पाठ करने से बन्धन में पड़ा मनुष्य बन्धन से मुक्त हो जाता है, रोग से पीडित व्यक्ति शीघ्र स्वास्थ्य- लाभ प्राप्त करता है, प्रवासी शीघ्र ही विदेश से घर आ जाता है तथा विद्या, यश, विजय और समस्त अभिलाषाओं की पूर्ति हो जाती है ll

कन्या वरं सुलभते पठनादमुष्य
स्तोत्रस्य धान्यधनवृद्धिसुखं समिच्छन् |
किं च प्रसीदति विभुः परमो दयालुः
श्रीविश्वनाथ इह सम्भजतोऽस्य साम्बः ||१०||

अर्थ :- इस स्तोत्र का पाठ करने से कन्या उत्तम वर प्राप्त करती है, धन-धान्य को वृद्धि तथा सुख की अभिलाषा पूर्ण होती है एवं उस पर व्यापक परम दयालु भगवान श्रीविश्वेश्वर पार्वती के सहित प्रसन्न हो जाते हैं ll

काशीपीठाधिनाथेन शङ्कराचार्यभिक्षुणा ||
महेश्वरेण ग्रथिता स्तोत्रमाला शिवारपिता ||११||

अर्थ :- काशीपीठ के शंकराचार्य पद पर प्रतिष्ठित श्रीस्वामी महेश्वरानन्दजी ने इस स्तोत्रमाला की रचना कर भगवान विश्वनाथ को समर्पित किया ll

॥ इति काशीपीठाधीश्वरशङ्कराचार्यश्रीस्वामिमहेश्वरानन्दसरस्वतीविरचितं श्रीविश्वनाथमङ्गलस्तोत्रं सम्पूर्णम्॥

ll इस प्रकार काशीपीठाधीशवर शंकराचार्य श्री स्वामी महेश्वरानन्दसरस्वतीविरचित श्रीविशवनाथमंगलस्तोत्र सम्पूर्ण हुआ ll

Sunday, 5 March 2023

Hanuman Stavan | हनुमान स्तवन



हनुमान स्तवन

हनुमान स्तवन का पाठ हनुमान जी का आवाहन करने के लिए किया जाता है | स्तवन शब्द का अर्थ है “प्रसन्न” यदि हम इस पाठ को करते हैं तो हनुमान जी बहुत प्रसन्न होते हैं | हनुमान स्तवन का नियमित रूप से पाठ करने से व्यक्ति के ऊपर हनुमान जी का आशीवार्द बना रहता है और व्यक्ति की सारी परेशानी समाप्त होने लगती है | यदि इसके साथ हनुमान चालीसा का पाठ भी किया जाए तो अविश्वसनीय रूप से फलदायी होता है |

हनुमान स्तवन बहुत ही शुभ और प्रबल है | कोई भी जातक इस पाठ को प्रतिदिन एकाग्रता से करे तो जीवन में सभी इच्छित चीजें प्राप्त कर सकता है |

हनुमान स्तवन पढ़ने से सभी बाधाओं से छुटकारा मिलता है | जातक का मानसिक तनाव कम होता है | इससे हनुमान जी जल्दी प्रसन्न होते हैं | इससे आपके जीवन में खुशियां आती हैं और धन-धान्य की वृद्धि होती हैं |

प्रनवउ पवनकुमार खल बल पावक ग्यानधन |
जासु ह्रदय आगार बसही राम शर चाप धर ||

अतुलित बलधामम हेम शैलाभदेहम |
दनुज वन कृशानुम ज्ञानिनामग्रगण्याम ||

सकल गुणनिधामम वानराणामधीशं |
रघुपति प्रियभक्तं वातजातम नमामि ||

गोष्पदीकृतवारीशम मशकीकृतराक्षसम |
रामायणं महामालारत्नं वंदेहं निलात्मजम ||

अंजनानंदनम वीरम जानकीशोकनाशणम |
कपीशमक्षहंतारं वंदे लंकाभयंकरम ||

उल्लंघ्यम सिन्धो: सलिलम सलिलम |
यः शोकवाहिनम जनकात्मजाया ||

आदाय तनैव ददाह लंका |
नमामि तम प्रांजलि रान्जनेयं || 

मनोजवम मारुततुल्यवेगम |
जितेन्द्रियं बुद्धिमताम वरिष्ठम ||

वात्मजम वानरयूथमुख्यम |
श्रीरामदूतम शरणम प्रप्धये ||

आन्जनेयमती पाटलालनम |
कान्चानाद्रिकमनीयविग्रहम ||

पारिजाततरुमूलवासिनम |
भावयामि पावमाननंदनम ||

यत्र यत्र रघुनाथकीर्तनम |
तत्र तत्र कृतमस्तकान्जलिम ||

वाश्पवारीपरीपूर्णलोचानाम |
मारुतिम नमत राक्षसांतकम ||

🔱 🔱 🔱 🔱 🔱 🔱 🔱 🔱 🔱 🔱 🔱 

हनुमान स्तवन अर्थ सहित :


प्रनवउँ पवन कुमार खल बल पावक ग्यानधन |
जासु हृदय आगार बसहिं राम सर चाप धर ||

अर्थ :- मैं अंजनी पुत्र और राम भक्त हनुमान को नमस्कार करता हूँ, जो राक्षस रूपी वन में अग्नि के समान ज्ञान से परिपूर्ण हैं। जिनके हृदय में हमेशा उनके प्रभु श्री राम निवास करते हैं। 

अतुलितबलधामं हेम शैलाभदेहं दनुज वन कृशानुं ज्ञानिनामग्रगण्यम् |
सकल गुणनिधामम वानराणामधीशं रघुपति प्रियभक्तं वातजातं नमामि ||

अर्थ :- जिस बल की तुलना किसी से भी नहीं कर सकते, अतुलित बल के निवास वाले, हेमकूट पर्वत के समान शरीर वाले और जो राक्षस रूपी वन के लिए अग्नि की तरह, ज्ञानियों में आगे रहने वाले, सभी वानरों के स्वामी, राम के प्रिय भक्त और पवन पुत्र हनुमान को नमस्कार करता हूँ।

गोष्पदीकृतवारीशं मशकीकृतराक्षसम् |
रामायण महामालारत्नं वंदेहं निलात्मजम् ||

अर्थ :- विशाल सागर, धेनु के खुर को संक्षिप्त बना देने वाले, विशाल दैत्यों के रूप को मच्छर जैसा बनाने वाले, जो रामायण रूपी महती माला का रत्न वायुपुत्र हनुमान को मैं नमस्कार करता हूँ।

अंजनानन्दम् वीरम् जानकीशोकनाशनम् |
कपीशमक्षहन्तारम् वंदे लङ्काभयंकरम् ||

अर्थ :- अपनी माता अंजनी को प्रसन्न रखनेवाले, जो माता सीता जी के सभी तरह के शोक को हरने वाले, लंकापति रावण के पुत्र अक्ष को मारने वाले, लंका में चारों तरफ भंयकर स्वरूप देने वाले, वानरों के स्वामी को मैं बार बार नमन करता हूँ।

उल्लङ्घ्य सिन्धोः सलिलं सलीलम् यः शोकवह्निं जनकात्मजाया |
आदाय तनैव ददाह लंका नमामि तं प्रांजलिरांजनेयम् ||

अर्थ :- जिन्होंने विशाल सागर को अपनी बुद्धि और चतुराई से पार किया और लंका में पहुंचे तथा माता सीता के सभी तरह के कष्टों की शोक रूपी अग्नि को लेकर उन्होंने लंका का दहन किया, उन अंजनी पुत्र हनुमान को मेरा हाथ जोड़ कर नमस्कार है |

मनोजवं मारूततुल्यवेगं जितेन्द्रियं बुद्धिमतां वरिष्ठं |
वातात्मजं वानरयूथमुख्यं श्रीरामदूतं शरणं प्रपद्ये ||

अर्थ :- जो मन के समान गति वाले, हवा की तरह वेग वाले, अपनी सभी इंद्रियों पर जीतने वाले, जो सभी विद्वानों में एवं बुद्धिमानों में श्रेष्ठ, वानरों के समूह के मुखिया, मैं उस राम के दूत हनुमान की शरण में आता हूँ।

आंजनेयमति पाटलाननं कांचनाद्रिकमनीयविग्रहम् |
पारिजाततरूमूलवासिनम भावयामि पवमाननन्दनम् ||

अर्थ :-  माता अंजनी के पुत्र, जिनका मुख गुलाब के फूल की तरह, हेमकूट पर्वत की तरह सुंदर दिखाई देने वाले, जिनका निवास कल्पवृक्ष की जड़ में है, मैं उन वायु पुत्र हनुमान का स्मरण करता हूँ।

यत्र यत्र रगुनाथ कीर्तनं तत्र तत्र कृतमस्तकाञ्जिलाम् |
वाश्पवारीपरीपूर्णलोचानाम मारूतिं नमत राक्षसान्तकम् ||

अर्थ :- हनुमान जी जहां कहीं भी श्री राम का कीर्तन और गुणगान होता हैं वहां पर मस्तक पर हाथों को जोड़े हुए, आंनद रूपी आँसू से भरे हुए नेत्रों तथा दैत्यों के काल के समान रहने वाले उन वायुपुत्र हनुमान को मैं नमस्कार करता हूँ।



Hanuman Ashtak | हनुमानाष्टक


हनुमान जी को संकटमोचन कहा जाता है। मान्यता है कि हनुमान जी की कृपा से सभी तरह के संकट पल भर में दूर हो जाते हैं। बड़े-बड़े पर्वत उठाने वाले, समुद्र लांघ जाने वाले, स्वयं ईश्वर का कार्य संवारने वाले संकटमोचन हनुमान की विधि पूर्वक पूजा करने से जीवन के सारे कष्ट दूर हो जाते हैं। कहा जाता है कि विधि विधान से बजरंगबली की पूजा-अर्चना करने से सभी विघ्न बाधाओं का अंत होता है और मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है। हनुमानजी के पथ पर चलने वालों को कोई भी संकट नहीं मिलता है। नियमित रूप से भगवान हनुमान की पूजा-आराधना का विशेष महत्व होता है। ऐसे में संकटों और कष्टों से मुक्ति के लिए प्रत्यके मंगलवार हनुमान अष्टक का पाठ करना चाहिए।

|| हनुमानाष्टक || 

बाल समय रवि भक्षी लियो तब,
तीनहुं लोक भयो अंधियारों |
ताहि सों त्रास भयो जग को,
यह संकट काहु सों जात न टारो |
देवन आनि करी बिनती तब,
छाड़ी दियो रवि कष्ट निवारो |
को नहीं जानत है जग में कपि,
संकटमोचन नाम तिहारो ||||

बालि की त्रास कपीस बसैं गिरि,
जात महाप्रभु पंथ निहारो |
चौंकि महामुनि साप दियो तब,
चाहिए कौन बिचार बिचारो |
कैद्विज रूप लिवाय महाप्रभु,
सो तुम दास के सोक निवारो ||||

अंगद के संग लेन गए सिय,
खोज कपीस यह बैन उचारो |
जीवत ना बचिहौ हम सो जु,
बिना सुधि लाये इहाँ पगु धारो |
हेरी थके तट सिन्धु सबै तब,
लाए सिया-सुधि प्राण उबारो ||||

रावण त्रास दई सिय को सब,
राक्षसी सों कही सोक निवारो |
ताहि समय हनुमान महाप्रभु,
जाए महा रजनीचर मारो |
चाहत सीय असोक सों आगि सु,
दै प्रभुमुद्रिका सोक निवारो ||||

बान लग्यो उर लछिमन के तब,
प्राण तजे सुत रावन मारो |
लै गृह बैद्य सुषेन समेत,
तबै गिरि द्रोण सु बीर उपारो |
आनि सजीवन हाथ दई तब,
लछिमन के तुम प्रान उबारो ||||

रावन युद्ध अजान कियो तब,
नाग कि फाँस सबै सिर डारो |
श्रीरघुनाथ समेत सबै दल,
मोह भयो यह संकट भारो |
आनि खगेस तबै हनुमान जु,
बंधन काटि सुत्रास निवारो ||||

बंधु समेत जबै अहिरावन,
लै रघुनाथ पताल सिधारो |
देबिहिं पूजि भलि विधि सों बलि,
देउ सबै मिलि मन्त्र विचारो |
जाय सहाय भयो तब ही,
अहिरावन सैन्य समेत संहारो ||||

काज किये बड़ देवन के तुम,
बीर महाप्रभु देखि बिचारो |
कौन सो संकट मोर गरीब को,
जो तुमसे नहिं जात है टारो |
बेगि हरो हनुमान महाप्रभु,
जो कछु संकट होय हमारो ||||

|| दोहा ||

लाल देह लाली लसे, अरु धरि लाल लंगूर |
वज्र देह दानव दलन, जय जय जय कपि सूर ||

Saturday, 4 March 2023

Bajrang Baan | बजरंग बाण

Hanuman Bahuk | हनुमान बाहुक



हनुमान बाहुक


"हनुमान बाहुक" गोस्वामी तुलसीदास द्वारा रचित स्रोत है। माना जाता है कि एकबार जब कलयुग के अत्यधिक प्रकोप से श्री तुलसीदास जी के भुजाओं में असहनीय पीड़ा हो रहा था तो तुलसीदास जी ने हनुमान की स्तुति में अपने दर्द को शब्दों में वर्णन करते हुए हनुमान बाहुक की रचना की |

श्रीगणेशाय नमः
श्रीजानकीवल्लभो विजयते
श्रीमद्-गोस्वामी-तुलसीदास-कृत
 
छप्पय

सिंधु-तरन, सिय-सोच-हरन, रबि-बाल-बरन तनु ।
भुज बिसाल, मूरति कराल कालहुको काल जनु ।।
गहन-दहन-निरदहन लंक निःसंक, बंक-भुव ।
जातुधान-बलवान-मान-मद-दवन पवनसुव ।।
कह तुलसिदास सेवत सुलभ सेवक हित सन्तत निकट ।
गुन-गनत, नमत, सुमिरत, जपत समन सकल-संकट-विकट ll१ll

स्वर्न-सैल-संकास कोटि-रबि-तरुन-तेज-घन ।
उर बिसाल भुज-दंड चंड नख-बज्र बज्र-तन ।।
पिंग नयन, भृकुटी कराल रसना दसनानन ।
कपिस केस, करकस लँगूर, खल-दल बल भानन ।।
कह तुलसिदास बस जासु उर मारुतसुत मूरति बिकट ।
संताप पाप तेहि पुरुष पहिं सपनेहुँ नहिं आवत निकट ll२ll

झूलना

पंचमुख-छमुख-भृगु मुख्य भट असुर सुर, सर्व-सरि-समर समरत्थ सूरो ।
बाँकुरो बीर बिरुदैत बिरुदावली, बेद बंदी बदत पैजपूरो ।।
जासु गुनगाथ रघुनाथ कह, जासुबल, बिपुल-जल-भरित जग-जलधि झूरो ।
दुवन-दल-दमनको कौन तुलसीस है, पवन को पूत रजपूत रुरो ll३ll

घनाक्षरी

भानुसों पढ़न हनुमान गये भानु मन-अनुमानि सिसु-केलि कियो फेरफार सो ।
पाछिले पगनि गम गगन मगन-मन, क्रम को न भ्रम, कपि बालक बिहार सो ।।
कौतुक बिलोकि लोकपाल हरि हर बिधि, लोचननि चकाचौंधी चित्तनि खभार सो।
बल कैंधौं बीर-रस धीरज कै, साहस कै, तुलसी सरीर धरे सबनि को सार सो ll४ll

भारत में पारथ के रथ केथू कपिराज, गाज्यो सुनि कुरुराज दल हल बल भो ।
कह्यो द्रोन भीषम समीर सुत महाबीर, बीर-रस-बारि-निधि जाको बल जल भो ।।
बानर सुभाय बाल केलि भूमि भानु लागि, फलँग फलाँग हूँतें घाटि नभतल भो ।
नाई-नाई माथ जोरि-जोरि हाथ जोधा जोहैं, हनुमान देखे जगजीवन को फल भो ll५ll

गो-पद पयोधि करि होलिका ज्यों लाई लंक, निपट निसंक परपुर गलबल भो ।
द्रोन-सो पहार लियो ख्याल ही उखारि कर, कंदुक-ज्यों कपि खेल बेल कैसो फल भो ।।
संकट समाज असमंजस भो रामराज, काज जुग पूगनि को करतल पल भो ।
साहसी समत्थ तुलसी को नाह जाकी बाँह, लोकपाल पालन को फिर थिर थल भो ll६ll

कमठ की पीठि जाके गोडनि की गाड़ैं मानो, नाप के भाजन भरि जल निधि जल भो ।
जातुधान-दावन परावन को दुर्ग भयो, महामीन बास तिमि तोमनि को थल भो ।।
कुम्भकरन-रावन पयोद-नाद-ईंधन को, तुलसी प्रताप जाको प्रबल अनल भो ।
भीषम कहत मेरे अनुमान हनुमान, सारिखो त्रिकाल न त्रिलोक महाबल भो ll७ll

दूत रामराय को, सपूत पूत पौनको, तू अंजनी को नन्दन प्रताप भूरि भानु सो ।
सीय-सोच-समन, दुरित दोष दमन, सरन आये अवन, लखन प्रिय प्रान सो ।।
दसमुख दुसह दरिद्र दरिबे को भयो, प्रकट तिलोक ओक तुलसी निधान सो ।
ज्ञान गुनवान बलवान सेवा सावधान, साहेब सुजान उर आनु हनुमान सो ll८ll
 
दवन-दुवन-दल भुवन-बिदित बल, बेद जस गावत बिबुध बंदीछोर को ।
पाप-ताप-तिमिर तुहिन-विघटन-पटु, सेवक-सरोरुह सुखद भानु भोर को ।।
लोक-परलोक तें बिसोक सपने न सोक, तुलसी के हिये है भरोसो एक ओर को ।
राम को दुलारो दास बामदेव को निवास, नाम कलि-कामतरु केसरी-किसोर को ll९ll
 
महाबल-सीम महाभीम महाबान इत, महाबीर बिदित बरायो रघुबीर को ।
कुलिस-कठोर तनु जोरपरै रोर रन, करुना-कलित मन धारमिक धीर को ।।
दुर्जन को कालसो कराल पाल सज्जन को, सुमिरे हरनहार तुलसी की पीर को ।
सीय-सुख-दायक दुलारो रघुनायक को, सेवक सहायक है साहसी समीर को ll१०ll

रचिबे को बिधि जैसे, पालिबे को हरि, हर मीच मारिबे को, ज्याईबे को सुधापान भो ।
बामदेव-रुप भूप राम के सनेही, नाम लेत-देत अर्थ धर्म काम निरबान हौ ।।
आपने प्रभाव सीताराम के सुभाव सील, लोक-बेद-बिधि के बिदूष हनुमान हौ ।
मन की बचन की करम की तिहूँ प्रकार, तुलसी तिहारो तुम साहेब सुजान हौ ll१४ll

मन को अगम, तन सुगम किये कपीस, काज महाराज के समाज साज साजे हैं ।
देव-बंदी छोर रनरोर केसरी किसोर, जुग जुग जग तेरे बिरद बिराजे हैं ।
बीर बरजोर, घटि जोर तुलसी की ओर, सुनि सकुचाने साधु खल गन गाजे हैं ।
बिगरी सँवार अंजनी कुमार कीजे मोहिं, जैसे होत आये हनुमान के निवाजे हैं ll१५ll
 
सवैया

जान सिरोमनि हौ हनुमान सदा जन के मन बास तिहारो ।
ढ़ारो बिगारो मैं काको कहा केहि कारन खीझत हौं तो तिहारो ।।
साहेब सेवक नाते तो हातो कियो सो तहाँ तुलसी को न चारो ।
दोष सुनाये तें आगेहुँ को होशियार ह्वैं हों मन तौ हिय हारो ll१६ll 

तेरे थपे उथपै न महेस, थपै थिरको कपि जे घर घाले ।
तेरे निवाजे गरीब निवाज बिराजत बैरिन के उर साले ।।
संकट सोच सबै तुलसी लिये नाम फटै मकरी के से जाले ।
बूढ़ भये, बलि, मेरिहि बार, कि हारि परे बहुतै नत पाले ll१७ll

सिंधु तरे, बड़े बीर दले खल, जारे हैं लंक से बंक मवा से ।
तैं रनि-केहरि केहरि के बिदले अरि-कुंजर छैल छवा से ।।
तोसों समत्थ सुसाहेब सेई सहै तुलसी दुख दोष दवा से ।
बानर बाज ! बढ़े खल-खेचर, लीजत क्यों न लपेटि लवा-से ll१८ll

अच्छ-विमर्दन कानन-भानि दसानन आनन भा न निहारो ।
बारिदनाद अकंपन कुंभकरन्न-से कुंजर केहरि-बारो ।।
राम-प्रताप-हुतासन, कच्छ, बिपच्छ, समीर समीर-दुलारो ।
पाप-तें साप-तें ताप तिहूँ-तें सदा तुलसी कहँ सो रखवारो ll१९ll

घनाक्षरी

जानत जहान हनुमान को निवाज्यौ जन, मन अनुमानि बलि, बोल न बिसारिये ।
सेवा-जोग तुलसी कबहुँ कहा चूक परी, साहेब सुभाव कपि साहिबी सँभारिये ।।
अपराधी जानि कीजै सासति सहस भाँति, मोदक मरै जो ताहि माहुर न मारिये ।
साहसी समीर के दुलारे रघुबीर जू के, बाँह पीर महाबीर बेगि ही निवारिये ll२०ll

बालक बिलोकि, बलि बारेतें आपनो कियो, दीनबन्धु दया कीन्हीं निरुपाधि न्यारिये ।
रावरो भरोसो तुलसी के, रावरोई बल, आस रावरीयै दास रावरो बिचारिये ।।
बड़ो बिकराल कलि, काको न बिहाल कियो, माथे पगु बलि को, निहारि सो निवारिये ।
केसरी किसोर, रनरोर, बरजोर बीर, बाँहुपीर राहुमातु ज्यौं पछारि मारिये ll२१ll

राम के गुलामनि को कामतरु रामदूत, मोसे दीन दूबरे को तकिया तिहारिये ।।
साहेब समर्थ तोसों तुलसी के माथे पर, सोऊ अपराध बिनु बीर, बाँधि मारिये ।
पोखरी बिसाल बाँहु, बलि, बारिचर पीर, मकरी ज्यौं पकरि कै बदन बिदारिये ll२२ll 

राम को सनेह, राम साहस लखन सिय, राम की भगति, सोच संकट निवारिये ।
मुद-मरकट रोग-बारिनिधि हेरि हारे, जीव-जामवंत को भरोसो तेरो भारिये ।।
कूदिये कृपाल तुलसी सुप्रेम-पब्बयतें, सुथल सुबेल भालू बैठि कै बिचारिये ।
महाबीर बाँकुरे बराकी बाँह-पीर क्यों न, लंकिनी ज्यों लात-घात ही मरोरि मारिये ll२३ll
 
लोक-परलोकहुँ तिलोक न बिलोकियत, तोसे समरथ चष चारिहूँ निहारिये ।
कर्म, काल, लोकपाल, अग-जग जीवजाल, नाथ हाथ सब निज महिमा बिचारिये ।।
खास दास रावरो, निवास तेरो तासु उर, तुलसी सो देव दुखी देखियत भारिये ।
बात तरुमूल बाँहुसूल कपिकच्छु-बेलि, उपजी सकेलि कपिकेलि ही उखारिये ll२४ll 

करम-कराल-कंस भूमिपाल के भरोसे, बकी बकभगिनी काहू तें कहा डरैगी ।
बड़ी बिकराल बाल घातिनी न जात कहि, बाँहूबल बालक छबीले छोटे छरैगी ।।
आई है बनाइ बेष आप ही बिचारि देख, पाप जाय सबको गुनी के पाले परैगी ।
पूतना पिसाचिनी ज्यौं कपिकान्ह तुलसी की, बाँहपीर महाबीर तेरे मारे मरैगी ll२५ll

भालकी कि कालकी कि रोष की त्रिदोष की है, बेदन बिषम पाप ताप छल छाँह की ।
करमन कूट की कि जन्त्र मन्त्र बूट की, पराहि जाहि पापिनी मलीन मन माँह की ।।
पैहहि सजाय, नत कहत बजाय तोहि, बाबरी न होहि बानि जानि कपि नाँह की ।
आन हनुमान की दुहाई बलवान की, सपथ महाबीर की जो रहै पीर बाँह की ll२६ll
 
सिंहिका सँहारि बल, सुरसा सुधारि छल, लंकिनी पछारि मारि बाटिका उजारी है ।
लंक परजारि मकरी बिदारि बारबार, जातुधान धारि धूरिधानी करि डारी है ।।
तोरि जमकातरि मंदोदरी कढ़ोरि आनी, रावन की रानी मेघनाद महँतारी है ।
भीर बाँह पीर की निपट राखी महाबीर, कौन के सकोच तुलसी के सोच भारी है ll२७ll 

तेरो बालि केलि बीर सुनि सहमत धीर, भूलत सरीर सुधि सक्र-रबि-राहु की ।
तेरी बाँह बसत बिसोक लोकपाल सब, तेरो नाम लेत रहै आरति न काहु की ।।
साम दान भेद बिधि बेदहू लबेद सिधि, हाथ कपिनाथ ही के चोटी चोर साहु की ।
आलस अनख परिहास कै सिखावन है, एते दिन रही पीर तुलसी के बाहु की ll२८ll
 
टूकनि को घर-घर डोलत कँगाल बोलि, बाल ज्यों कृपाल नतपाल पालि पोसो है ।
कीन्ही है सँभार सार अँजनी कुमार बीर, आपनो बिसारि हैं न मेरेहू भरोसो है ।।
इतनो परेखो सब भाँति समरथ आजु, कपिराज साँची कहौं को तिलोक तोसो है ।
सासति सहत दास कीजे पेखि परिहास, चीरी को मरन खेल बालकनि को सो है ll२९ll

आपने ही पाप तें त्रिपात तें कि साप तें, बढ़ी है बाँह बेदन कही न सहि जाति है ।
औषध अनेक जन्त्र मन्त्र टोटकादि किये, बादि भये देवता मनाये अधिकाति है ।।
करतार, भरतार, हरतार, कर्म काल, को है जगजाल जो न मानत इताति है ।
चेरो तेरो तुलसी तू मेरो कह्यो राम दूत, ढील तेरी बीर मोहि पीर तें पिराति है ll३०ll
 
दूत राम राय को, सपूत पूत बाय को, समत्व हाथ पाय को सहाय असहाय को ।
बाँकी बिरदावली बिदित बेद गाइयत, रावन सो भट भयो मुठिका के घाय को ।।
एते बड़े साहेब समर्थ को निवाजो आज, सीदत सुसेवक बचन मन काय को ।
थोरी बाँह पीर की बड़ी गलानि तुलसी को, कौन पाप कोप, लोप प्रकट प्रभाय को ll३१ll 

देवी देव दनुज मनुज मुनि सिद्ध नाग, छोटे बड़े जीव जेते चेतन अचेत हैं ।
पूतना पिसाची जातुधानी जातुधान बाम, राम दूत की रजाइ माथे मानि लेत हैं ।।
घोर जन्त्र मन्त्र कूट कपट कुरोग जोग, हनुमान आन सुनि छाड़त निकेत हैं ।
क्रोध कीजे कर्म को प्रबोध कीजे तुलसी को, सोध कीजे तिनको जो दोष दुख देत हैं ll३२ll
 
तेरे बल बानर जिताये रन रावन सों, तेरे घाले जातुधान भये घर-घर के ।
तेरे बल रामराज किये सब सुरकाज, सकल समाज साज साजे रघुबर के ।।
तेरो गुनगान सुनि गीरबान पुलकत, सजल बिलोचन बिरंचि हरि हर के ।
तुलसी के माथे पर हाथ फेरो कीसनाथ, देखिये न दास दुखी तोसो कनिगर के ll३३ll 

पालो तेरे टूक को परेहू चूक मूकिये न, कूर कौड़ी दूको हौं आपनी ओर हेरिये ।
भोरानाथ भोरे ही सरोष होत थोरे दोष, पोषि तोषि थापि आपनी न अवडेरिये ।।
अँबु तू हौं अँबुचर, अँबु तू हौं डिंभ सो न, बूझिये बिलंब अवलंब मेरे तेरिये ।
बालक बिकल जानि पाहि प्रेम पहिचानि, तुलसी की बाँह पर लामी लूम फेरिये ll३४ll 

घेरि लियो रोगनि, कुजोगनि, कुलोगनि ज्यौं, बासर जलद घन घटा धुकि धाई है ।
बरसत बारि पीर जारिये जवासे जस, रोष बिनु दोष धूम-मूल मलिनाई है ।।
करुनानिधान हनुमान महा बलवान, हेरि हँसि हाँकि फूँकि फौजैं ते उड़ाई है ।
खाये हुतो तुलसी कुरोग राढ़ राकसनि, केसरी किसोर राखे बीर बरिआई है ll३५ll

सवैया

राम गुलाम तु ही हनुमान गोसाँई सुसाँई सदा अनुकूलो ।
पाल्यो हौं बाल ज्यों आखर दू पितु मातु सों मंगल मोद समूलो ।।
बाँह की बेदन बाँह पगार पुकारत आरत आनँद भूलो ।
श्री रघुबीर निवारिये पीर रहौं दरबार परो लटि लूलो ll३६ll

घनाक्षरी

काल की करालता करम कठिनाई कीधौं, पाप के प्रभाव की सुभाय बाय बावरे ।
बेदन कुभाँति सो सही न जाति राति दिन, सोई बाँह गही जो गही समीर डाबरे ।।
लायो तरु तुलसी तिहारो सो निहारि बारि, सींचिये मलीन भो तयो है तिहुँ तावरे ।
भूतनि की आपनी पराये की कृपा निधान, जानियत सबही की रीति राम रावरे ll३७ll

पाँय पीर पेट पीर बाँह पीर मुँह पीर, जरजर सकल पीर मई है ।
देव भूत पितर करम खल काल ग्रह, मोहि पर दवरि दमानक सी दई है ।।
हौं तो बिनु मोल के बिकानो बलि बारेही तें, ओट राम नाम की ललाट लिखि लई है ।
कुँभज के किंकर बिकल बूढ़े गोखुरनि, हाय राम राय ऐसी हाल कहूँ भई है ll३८ll

बाहुक-सुबाहु नीच लीचर-मरीच मिलि, मुँहपीर केतुजा कुरोग जातुधान हैं ।
राम नाम जगजाप कियो चहों सानुराग, काल कैसे दूत भूत कहा मेरे मान हैं ।।
सुमिरे सहाय राम लखन आखर दोऊ, जिनके समूह साके जागत जहान हैं ।
तुलसी सँभारि ताड़का सँहारि भारि भट, बेधे बरगद से बनाइ बानवान हैं ll३९ll
 
बालपने सूधे मन राम सनमुख भयो, राम नाम लेत माँगि खात टूकटाक हौं ।
परयो लोक-रीति में पुनीत प्रीति राम राय, मोह बस बैठो तोरि तरकि तराक हौं ।।
खोटे-खोटे आचरन आचरत अपनायो, अंजनी कुमार सोध्यो रामपानि पाक हौं ।
तुलसी गुसाँई भयो भोंडे दिन भूल गयो, ताको फल पावत निदान परिपाक हौं ll४०ll
 
असन-बसन-हीन बिषम-बिषाद-लीन, देखि दीन दूबरो करै न हाय हाय को ।
तुलसी अनाथ सो सनाथ रघुनाथ कियो, दियो फल सील सिंधु आपने सुभाय को ।।
नीच यहि बीच पति पाइ भरु हाईगो, बिहाइ प्रभु भजन बचन मन काय को ।
ता तें तनु पेषियत घोर बरतोर मिस, फूटि फूटि निकसत लोन राम राय को ll४१ll
 
जीओं जग जानकी जीवन को कहाइ जन, मरिबे को बारानसी बारि सुरसरि को ।
तुलसी के दुहूँ हाथ मोदक हैं ऐसे ठाँउ, जाके जिये मुये सोच करिहैं न लरि को ।।
मोको झूटो साँचो लोग राम को कहत सब, मेरे मन मान है न हर को न हरि को ।
भारी पीर दुसह सरीर तें बिहाल होत, सोऊ रघुबीर बिनु सकै दूर करि को ll४२ll

सीतापति साहेब सहाय हनुमान नित, हित उपदेश को महेस मानो गुरु कै ।
मानस बचन काय सरन तिहारे पाँय, तुम्हरे भरोसे सुर मैं न जाने सुर कै ।।
ब्याधि भूत जनित उपाधि काहु खल की, समाधि कीजे तुलसी को जानि जन फुर कै ।
कपिनाथ रघुनाथ भोलानाथ भूतनाथ, रोग सिंधु क्यों न डारियत गाय खुर कै ll४३ll
 
कहों हनुमान सों सुजान राम राय सों, कृपानिधान संकर सों सावधान सुनिये ।
हरष विषाद राग रोष गुन दोष मई, बिरची बिरञ्ची सब देखियत दुनिये ।।
माया जीव काल के करम के सुभाय के, करैया राम बेद कहैं साँची मन गुनिये ।
तुम्ह तें कहा न होय हा हा सो बुझैये मोहि, हौं हूँ रहों मौनही बयो सो जानि लुनिये ll४४ll

Thursday, 2 March 2023

Hanuman Chalisa with Hindi Meaning |हनुमान चालीसा हिंदी अर्थ के साथ



|| ॐ श्री हनुमते नमः ||


|| दोहा ||

श्रीगुरु चरन सरोज रज निज मनु मुकुरु सुधारि |
बरनउँ रघुबर बिमल जसु जो दायकु फल चारि ||

अर्थ – श्री गुरु के चरण कमल के धूल से अपने मन रुपी दर्पण को निर्मल करके प्रभु श्रीराम के गुणों का वर्णन करता हूँ जो चारों प्रकार के फल धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष देने वाला है।

बुद्धिहीन तनु जानिके सुमिरौं पवन-कुमार |
बल बुधि बिद्या देहु मोहिं हरहु कलेस बिकार ||

हिंदी अर्थ : “हे पवन कुमार! मैं आपको सुमिरन करता हूँ। मुझे बुद्धिहीन जानकार सुनिए और बल, बुद्धि, विद्या दीजिये और मेरे क्लेश और विकार हर लीजिये।

|| चौपाई ||

जय हनुमान ज्ञान गुन सागर |
जय कपीस तिहुँ लोक उजागर ||||


अर्थ – ज्ञान गुण के सागर हनुमान जी की जय। तीनों लोकों को अपनी कीर्ति से प्रकाशित करने वाले कपीश की जय।

राम दूत अतुलित बल धामा |
अंजनि-पुत्र पवनसुत नामा ||२||


अर्थ – हे अतुलित बल के धाम रामदूत हनुमान आप अंजनिपुत्र और पवनसुत के नाम से संसार में जाने जाते हैं।

महाबीर बिक्रम बजरंगी |
कुमति निवार सुमति के संगी ||३||


अर्थ – हे महावीर आप वज्र के समान अंगों वाले हैं और अपने भक्तों की कुमति दूर करके उन्हें सुमति प्रदान करते हैं।

कंचन बरन बिराज सुबेसा |
कानन कुण्डल कुँचित केसा ||४||


अर्थ – आपके स्वर्ण के सामान कांतिवान शरीर पर सुन्दर वस्त्र सुशोभित हो रही है। आपके कानो में कुण्डल और बाल घुंघराले हैं।

हाथ बज्र औ ध्वजा बिराजै |
काँधे मूँज जनेउ साजै ||५||


अर्थ – आपने अपने हाथों में वज्र के समान कठोर गदा और ध्वजा धारण किया है। कंधे पर मुंज और जनेऊ भी धारण किया हुआ है।

संकर सुवन केसरी नंदन |
तेज प्रताप महा जग वंदन ||६||


अर्थ – आप भगवान शंकर के अवतार और केसरीनन्दन हैं। आप परम तेजस्वी और जगत में वंदनीय हैं।

बिद्यावान गुनी अति चातुर |
राम काज करिबे को आतुर ||७||


अर्थ – आप विद्यावान, गुनी और अत्यंत चतुर हैं और प्रभु श्रीराम की सेवा में सदैव तत्पर रहते हैं।

प्रभु चरित्र सुनिबे को रसिया |
राम लखन सीता मन बसिया ||८||


अर्थ – आप प्रभु श्रीराम की कथा सुनने के लिए सदा लालायित रहते हैं। राम लक्ष्मण और सीता सदा आपके ह्रदय में विराजते हैं।

सूक्ष्म रूप धरि सियहिं दिखावा |
बिकट रूप धरि लंक जरावा ||||


अर्थ – आपने अति लघु रूप धारण करके सीता माता को दर्शन दिया और विकराल रूप धारण करके लंका को जलाया।

भीम रूप धरि असुर सँहारे |
रामचन्द्र के काज सँवारे ||१०||


अर्थ – आपने विशाल रूप धारण करके असुरों का संहार किया और श्रीराम के कार्य को पूर्ण किया।

लाय सजीवन लखन जियाये |
श्री रघुबीर हरषि उर लाये ||||


अर्थ – आपने संजीवनी बूटी लाकर लक्ष्मण के प्राणो की रक्षा की। इस कार्य से प्रसन्न होकर प्रभु श्रीराम ने आपको ह्रदय से लगाया।

रघुपति कीन्ही बहुत बड़ाई |
तुम मम प्रिय भरतहि सम भाई ||२||


अर्थ – भगवान श्रीराम ने आपकी बहुत प्रसंशा की और कहा कि हे हनुमान तुम मुझे भरत के समान ही अत्यंत प्रिय हो।

सहस बदन तुम्हरो जस गावैं |
अस कहि श्रीपति कण्ठ लगावैं ||३||


अर्थ – हजार मुख वाले शेषनाग तुम्हारे यश का गान करें ऐसा कहकर श्रीराम ने आपको गले लगाया।

सनकादिक ब्रह्मादि मुनीसा |
नारद सारद सहित अहीसा ||४||


अर्थ : “श्री सनक, श्री सनातन, श्री सनन्दन, श्री सनत्कुमार आदि मुनि ब्रह्मा आदि देवता नारद जी, सरस्वती जी, शेषनाग जी सब आपका गुण गान करते है।”

जम कुबेर दिगपाल जहाँ ते |
कबि कोबिद कहि सके कहाँ ते ||५||


अर्थ : “यमराज, कुबेर आदि सब दिशाओं के रक्षक, कवि विद्वान, पंडित या कोई भी आपके यश का पूर्णतः वर्णन नहीं कर सकते।”

तुम उपकार सुग्रीवहिं कीन्हा |
राम मिलाय राज पद दीन्हा ||६||


अर्थ – आपने सुग्रीव पर उपकार किया और उन्हें राम से मिलाया और राजपद प्राप्त कराया।

तुम्हरो मंत्र बिभीषन माना |
लंकेस्वर भए सब जग जाना ||७||


अर्थ – आपके सलाह को मानकर विभीषण लंकेश्वर हुए ये सारा संसार जानता है।

जुग सहस्र जोजन पर भानू |
लील्यो ताहि मधुर फल जानू ||८||

अर्थ – हे हनुमान जी आपने बाल्यावस्था में ही हजारों योजन दूर स्थित सूर्य को मीठा फल जानकर खा लिया था।

प्रभु मुद्रिका मेलि मुख माहीं |
जलधि लाँघि गये अचरज नाहीं ||||


अर्थ – आपने भगवान राम की अंगूठी अपने मुख में रखकर विशाल समुद्र को लाँघ गए थे तो इसमें कोई आश्चर्य नहीं।

दुर्गम काज जगत के जेते |
सुगम अनुग्रह तुम्हरे तेते ||२||


अर्थ – संसार में जितने भी दुर्गम कार्य हैं वे आपकी कृपा से सरल हो जाते हैं।

राम दुआरे तुम रखवारे |
होत न आज्ञा बिनु पैसारे ||||


अर्थ – भगवान राम के द्वारपाल आप ही हैं आपकी आज्ञा के बिना उनके दरबार में प्रवेश नहीं मिलता।

सब सुख लहै तुम्हारी सरना |
तुम रच्छक काहू को डर ना ||२||


अर्थ – आपकी शरण में आए हुए को सब सुख मिल जाते हैं। आप जिसके रक्षक हैं उसे किसी का डर नहीं।

आपन तेज सम्हारो आपै |
तीनों लोक हाँक तें काँपै ||३||


अर्थ – हे महावीर, अपने तेज के बल को स्वयं आप ही संभाल सकते हैं। आपकी एक हुंकार से तीनो लोक कांपते हैं।

भूत पिसाच निकट नहिं आवै |
महाबीर जब नाम सुनावै ||४||


अर्थ – आपका नाम मात्र लेने से भूत पिशाच भाग जाते हैं और नजदीक नहीं आते।

नासै रोग हरे सब पीरा |
जपत निरन्तर हनुमत बीरा ||५||


अर्थ – हनुमान जी के नाम का निरंतर जप करने से सभी प्रकार के रोग और पीड़ा नष्ट हो जाते हैं।

संकट तें हनुमान छुड़ावै |
मन क्रम बचन ध्यान जो लावै ||२६||


अर्थ – जो भी मन क्रम और वचन से हनुमान जी का ध्यान करता है वो संकटों से बच जाता है।

सब पर राम तपस्वी राजा |
तिन के काज सकल तुम साजा ||७||

अर्थ – जो राम स्वयं भगवान हैं उनके भी समस्त कार्यों का संपादन आपके ही द्वारा किया गया।

और मनोरथ जो कोई लावै |
सोई अमित जीवन फल पावै ||२८||


अर्थ – हे हनुमान जी आप भक्तों के सब प्रकार के मनोरथ पूर्ण करते हैं।

चारों जुग परताप तुम्हारा |
है परसिद्ध जगत उजियारा ||||


अर्थ – हे हनुमान जी, आपके नाम का प्रताप चारो युगों (सतयुग, त्रेता , द्वापर और कलियुग ) में है।

साधु सन्त के तुम रखवारे |
असुर निकन्दन राम दुलारे ||||


अर्थ – आप साधु संतों के रखवाले, असुरों का संहार करने वाले और प्रभु श्रीराम के अत्यंत प्रिय हैं।

अष्ट सिद्धि नौ निधि के दाता |
अस बर दीन जानकी माता ||||

अर्थ – आप आठों प्रकार के सिद्धि और नौ निधियों के प्रदाता हैं और ये वरदान आपको जानकी माता ने दिया है।

राम रसायन तुम्हरे पासा |
सदा रहो रघुपति के दासा ||२||


अर्थ – आप अनंत काल से प्रभु श्रीराम के भक्त हैं और राम नाम की औषधि सदैव आपके पास रहती है।

तुम्हरे भजन राम को पावै |
जनम जनम के दुख बिसरावै ||३||


अर्थ – आपकी भक्ति से जन्म जन्मांतर के दुखों से मुक्ति देने वाली प्रभु श्रीराम की कृपा प्राप्त होती है।

अन्त काल रघुबर पुर जाई |
जहाँ जन्म हरि-भक्त कहाई ||४||


अर्थ – वो अंत समय में मृत्यु के बाद भगवान के लोक में जाता है और जन्म लेने पर हरि भक्त बनता है।

और देवता चित्त न धरई |
हनुमत सेइ सर्ब सुख करई ||५||


अर्थ – किसी और देवता की पूजा न करते हुए भी सिर्फ आपकी कृपा से ही सभी प्रकार के फलों की प्राप्ति हो जाती है।

संकट कटै मिटै सब पीरा |
जो सुमिरै हनुमत बलबीरा ||६||


अर्थ – जो भी व्यक्ति हनुमान जी का ध्यान करता है उसके सब प्रकार के संकट और पीड़ा मिट जाते हैं।

जय जय जय हनुमान गोसाईं |
कृपा करहु गुरुदेव की नाईं ||७||


अर्थ – हे हनुमान गोसाईं आपकी जय हो। आप मुझ पर गुरुदेव के समान कृपा करें।

जो सत बार पाठ कर कोई |
छूटहि बन्दि महा सुख होई ||८||


अर्थ – जो इस हनुमान चालीसा का सौ बार पाठ करता है उसके सारे कष्ट दूर हो जाते हैं और उसे महान सुख की प्राप्ति होती है।

जो यह पढ़ै हनुमान चालीसा |
होय सिद्धि साखी गौरीसा ||||


अर्थ – जो इस हनुमान चालीसा का पाठ करता है उसे निश्चित ही सिद्धि की प्राप्ति होती है, इसके साक्षी स्वयं भगवान शिव हैं।

तुलसीदास सदा हरि चेरा |
कीजै नाथ हृदय महँ डेरा ||||


अर्थ – हे हनुमान जी, तुलसीदास सदैव प्रभु श्रीराम का भक्त है ऐसा समझकर आप मेरे ह्रदय में निवास करें।

|| दोहा ||

पवनतनय संकट हरन मंगल मूरति रूप |
राम लखन सीता सहित हृदय बसहु सुर भूप ||

अर्थ – हे मंगल मूर्ति पवनसुत हनुमान जी, आप मेरे ह्रदय में राम लखन सीता सहित निवास कीजिये।

Jay Ram Rama Ramanam Shamanam

जय राम रमारमनं समनं    यह स्तुति भगवान शिव द्वारा प्रभु राम के अयोध्या वापस आने के उपलक्ष्य में गाई गई है। जिसके अंतर्गत सभी ऋ...