ओम् ह्रीं क्षम भक्ष ज्वला जिह्वे प्रत्यंगिरेय क्षमा ह्रींहुं फट् ऊं ह्रीं धुम उत्तिष्ठ पुरुषि किम स्वाभिमानी भयं मयसमुपासितं यति शाक्यं अशाक्यं वा ठन्न मय भगवती संयम्य स्वाहा धुं ह्रीं ॐ
प्रत्यंगिरा मूल मंत्र:
ॐ ऐं ह्रीं श्रीं क्लीं स्फ्रिं हूं प्रत्यंगिरे मम शत्रुं स्फराय-स्फराय मारय मारय हूं फट् स्वाहा ||
यह मंत्र सर्व शत्रुओं और प्रयोगों का विनाश करने वाला है। परिस्थिति के अनुसार जप कर दशांश गृह करें।
विपरीत प्रत्यंगिरा देवी मंत्र:
ॐ ऐं ह्रीं श्रीं प्रत्यंगिरे मम रक्ष रक्ष मम शत्रुं भंजय-भंजय फे हुं फट् स्वाहा ||
|| प्रत्यंगिरा ध्यान मंत्र ||
खड्गंकपालंडमरुन्त्रिशूलं सम्बिभ्रति चन्द्रकलावतंसा | पिंगोर्ध्व-केशासित-भीमद्रंस्त्र भूयादविभूत्या मम भद्रकाली ||
|| प्रत्यंगिरा गायत्री मंत्र ||
श्री प्रत्यंगिरागाय- "ॐ प्रत्यंगिरायै विद्महे शत्रुनिशुदिन्यै धीमहि तन्नो देवी प्रचोदयात्" ||
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