Tuesday, 4 February 2025

Sri Hinglaj Ashtak


|| श्री हिंगलाज अष्टक ||

ॐ हिंगुले परम हिंगुले अमृत-रूपिणी |
तनु शक्ति मनः शिवे श्री हिंगुलाय नमः स्वाहा ||

प्रचंड दंड बहु चंद योग निद्रा भैरवी
भुजंग केश कुंडलाय कंठला मनोहरी |
निकंद काम क्रोध दैत्य असुर कल मर्दनी
नमोस्तु माता हिंगलाज निरंजनी ||१||

रक्त सिंह आसननी सावधान शंकरी
कुठार खड्ग खप्र धार कर दलन महेश्वरी |
निशुम्भ शुम्भ रक्तबीज दैत्य तेज भंजनी
नमोस्तु माता हिंगलाज निरंजनी ||२||

जवाहर रत्न बेल केल सर्व कर्म लोलनी
व्याल भाल चन्द्रकेतु पुष्प माला मेखली |
चंड मुंड गर्जनी सुनाद विंध्यवासिनी
नमोस्तु माता हिंगलाज निरंजनी ||३||

गजेन्द्र चाल धूमकेतु चाल लोचनी
उदार उत्सव तिमिर नाश सुशोभ शंशांकरी |
अनादिराज सिद्ध लोक सप्तद्वीप विनी
नमोस्तु माता हिंगलाज निर्मल निरंजनी ||४||

शैल शिखर रजनी जोग जुगत कारिणी
चंड मुंड चूर कर सहस्त्र भुजा धारिणी |
कराल केश भूत भेष अनंत रूप दायिनी
नमोस्तु माता हिंगलाज निरंजनी ||५||

कलोल लोल लोचनी आनंद कंद दायिनी
हृदय कपाट खोलानी सुशेष शब्द भाषिणी |
धर्म; कर्म जन्म जात भक्ति मुक्ति दायिनी
नमोस्तु माता हिंगलाज निरंजनी ||६||

आलोक लोक रजनी दिव्य देव वर दायिनी
त्रिलोक शोक हारिणी सत्य वाक्य बोलनी |
आदि अन्त मध्य माता तेरो रूप सर्जनी
नमोस्तु माता हिंगलाज निर्मल निरंजनी ||७||

कुबेर वरुण इंद्रादि सिद्ध साध रांचनी
अगम्य पंथ दर्शन मत जन्म कष्ट हारिणी |
दासफ़ी शरण माता अमर पद दायिनी
नमोस्तु माता हिंगलाज निर्मली ||८||

शेष सार नारदादि योग निद्रा भैरवी
गंध मादन केलि करत अंग दैत्य मर्दिनी
अंत सब फाङनि हव्य काव्य दायिनी
नमोस्तु मात हिंगलाज निरमला निरंजनी ||९||

अष्ट हस गर्जनी त्रिशूल चक्र धारिणी
काल कंठ फूट ख्याल मुंड माल धारिणी
धूम धार श्वेत रूप दैत्य गर्व भंजनी
नमोस्तु मात हिंगलाज निरमला निरंजनी ||१०||

#devishaktipeeth #rajarajeshwarimath
#shrividya #shrichakra #rajarajeshwari #mahatripursundari #lalitha #shodashi #balatripursundari #kamakshi #Kamakhya #dusamahavidya #devinepower #devipadmavati #rajyogini #mahadevi #mahadev #devadhidev 
#राजराजेश्वरी #राजरोग #राजर्षि #राजलिपि #राजवंश
#राजशास्त्र #राजयंत्र





No comments:

Post a Comment

Shri Indrakshi Kavacham

|| श्री इन्द्राक्षीकवचम् || ॐ श्रीगणेशाय नमः । देव्युवाच - भगवान् देवदेवश लोकेश्वर जगत्पते । इन्द्राक्ष्याः कवचं ब्रूहि सर्वतत्त्वनिरूपिणम् ...