Monday, 30 January 2023

Shiv Tandav Stotram in Sanskrit


शिवताण्डवस्तोत्र


जटाटवीगलज्जलप्रवाहपावितस्थले
गलेऽवलम्ब्य लम्बितां भुजङ्गतुङ्गमालिकाम् |
डमड्डमड्डमड्डमन्निनादवड्डमर्वयं
चकार चण्डताण्डवं तनोतु नः शिवः शिवम् ||१||

जटाकटाहसम्भ्रमभ्रमन्निलिम्पनिर्झरी
विलोलवीचिवल्लरीविराजमानमूर्धनि |
धगद्धगद्धगज्जलल्ललाटपट्टपावके
किशोरचन्द्रशेखरे रतिः प्रतिक्षणं मम ||२||

धराधरेन्द्रनन्दिनीविलासबन्धुबन्धुर
स्फुरद्विगन्तसन्ततिप्रमोदमानमानसे |
कृपाकटाक्षधोरणी निरुद्धदुर्धरापदि
क्वचिद्विगम्बरे मनोविनोदमेतु वस्तुनि ||३||

जटाभुजङ्गपिङ्गल स्फुरत्फणामणिप्रभा
कदंबकुंकुमद्रवप्रलिप्तदिग्वधूमुखे |
मदान्धसिंधुरस्फुरत्वगुत्तरीयमेदुरे
मनोविनोदमद्भुतं बिभर्तु भूतभर्तरि ||४||

सहस्रलोचनप्रभृत्यशेषलेखशेखर
प्रसूनधूलिधोरणी विधूसराङघ्रिपीठभूः |
भुजङ्गराजमालया निबद्धजाटजूटक
श्रियैचिरायजायतां चकोरबन्धुशेखरः ||५||

ललाटचत्वरज्वलद्धनञ्जयस्फुलिङ्गभा
निपीतपंचसायकं नमन्निलिम्पनायकम् |
सुधामयूखलेखया विराजमानशेखरं
महाकपालिसम्पदेशिरोजटालमस्तु नः ||६||

करालभालपट्टिकाधगद्‍धगद्‍धगज्ज्वलद्
धनञ्जयाहुतीकृतप्रचण्डपञ्चसायके |
धराधरेन्द्रनन्दिनीकुचाग्रचित्रपत्रक
प्रकल्पनैकशिल्पिनी त्रिलोचने रतिर्मम ||७||

नवमेघमण्डली निरुद्‍धदुरर्धरस्फुरत्
कुहूनिशीथिनीतमः प्रबन्धबद्धकन्धरः |
निलिम्पनिर्झरीधरस्तनोतु कृत्तसिन्धुरः
कलानिधानबन्धुरः श्रियं जगद्धुरंधरः ||८||

प्रफुल्लनीलपङ्कजप्रपञ्चकालिमप्रभा वलम्बिकण्ठकन्दलीरुचिप्रबद्धकन्धरम् |
स्मरच्छिदं पुरच्छिदं भवच्छिदं मखच्छिदं
गजच्छिदान्धकच्छिदं तमन्तकच्छिदं भजे ||||

अखर्वसर्वमङ्गलाकलाकदम्बमञ्जरी
रसप्रवाहमाधुरीविजृंभणामधुव्रतम् |
स्मरान्तकं पुरातकं भवान्तकं मखान्तकं
गजान्तकान्धकान्तकं तमन्तकान्तकं भजे ||१०||

जयत्वदभ्रविभ्रमभ्रमद्‍भुजंगमश्वसद्
विनिर्गमत्क्रमस्फुरत्करालभालहव्यवत् |
धिमिद्धिमिद्धिधिधवाननमृदङ्गतुङ्गमङ्गल
ध्वनिक्रमप्रवर्तितप्रचण्डताण्डवः शिवः ||||

स्पृषद्विचित्रतल्पयोर्भुजङ्गममौक्तिकस्रजोर्
गरिष्ठरत्नलोष्ठयोः सुहृद्विपक्षपक्षयोः |
तृणारविन्दचक्षुषोः प्रजामहीमहेन्द्रयोः
समप्रवृत्तिकः कदा सदाशिवं भजाम्यहम् ||२||

कदा निलिम्पनिर्झरीनिकुञ्जकोटरे वसन्
विमुक्तदुर्मतिः सदा शिरस्थमञ्जलिं वहन् |
विमुक्तलोललोचनो ललामभालग्नकः
शिवेति मन्त्रमुच्चरंकदा सुखी भवम्यहम् ||१३||

इमं हि नित्यमेवमुक्तमुत्तमोत्तमं स्तवं
पठन्स्मरनब्रूवन्नरो विशुद्धिमेतिसंततम् |
हरे गुरौ सुभक्तिमाशु याति नान्यथागतिं
विमोहनं हि देहिनां सुशङकरस्य 
चिंतनम् ||१४|| 

पूजावसानसमये दशवक्त्रगीतं यः
शम्भुपूजनपरं पठति प्रदोषे |
तस्य स्थिरां रथगजेन्द्रतुरङ्गयुक्तां
लक्ष्मीं सदैव सुमुखिं प्रददाति शम्भुः ||१५||

इति श्रीरावण कृतम् शिव ताण्डव स्तोत्रम् संपूर्णम् ||


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