Wednesday, 22 February 2023

गणेश जी की महामंत्र



वक्रतुण्ड महाकाय सूर्यकोटि समप्रभ।
निर्विघ्नं कुरु मे देव सर्वकार्येषु सर्वदा॥


हे घुमावदार सूंड वाले, विशाल शरीर वाले, करोड़ सूर्य के समान महान प्रतिभाशाली।
हे प्रभु! हमेशा मेरे सारे कार्य बिना विघ्न के पूरे करने की कृपा करें l

Monday, 20 February 2023

Madhurashtakam in Sanskrit | मधुराष्टकम्



मधुराष्टकम्:


अधरं मधुरं वदनं मधुरं नयनं मधुरं हसितं मधुरं l
हृदयं मधुरं गमनं मधुरं मधुराधिपते रखिलं मधुरं ll१ll

वचनं मधुरं चरितं मधुरं वसनं मधुरं वलितं मधुरं l
चलितं मधुरं भ्रमितं मधुरं मधुराधिपते रखिलं मधुरं ll२ll

वेणुर्मधुरो रेणुर्मधुरः पाणिर्मधुरः पादौ मधुरौ l
नृत्यं मधुरं सख्यं मधुरं मधुराधिपते रखिलं मधुरं ll३ll

गीतं मधुरं पीतं मधुरं भुक्तं मधुरं सुप्तं मधुरं l
रूपं मधुरं तिलकं मधुरं मधुराधिपते रखिलं मधुरं ll४ll

करणं मधुरं तरणं मधुरं हरणं मधुरं रमणं मधुरं l
वमितं मधुरं शमितं मधुरं मधुराधिपते रखिलं मधुरं ll५ll

गुञ्जा मधुरा माला मधुरा यमुना मधुरा वीची मधुरा l
सलिलं मधुरं कमलं मधुरं मधुराधिपते रखिलं मधुरं ll६ll

गोपी मधुरा लीला मधुरा युक्तं मधुरं मुक्तं मधुरं l
दृष्टं मधुरं सृष्टं मधुरं मधुराधिपते रखिलं मधुरं ll७ll

गोपा मधुरा गावो मधुरा यष्टिर्मधुरा सृष्टिर्मधुरा l
दलितं मधुरं फलितं मधुरं मधुराधिपते रखिलं मधुरं ll८ll

- श्रीवल्लभाचार्य कृत

Wednesday, 8 February 2023

Annapoorna Stotram | अन्नपूर्णा स्तोत्रम्

अन्नपूर्णा स्तोत्रम्

नित्यानन्दकरी वराभयकरी सौन्दर्यरत्नाकरी
निर्धूताखिलघोरपावनकरी प्रत्यक्षमाहेश्वरी ।
प्रालेयाचलवंशपावनकरी काशीपुराधीश्वरी
भिक्षां देहि कृपावलम्बनकरी मातान्नपूर्णेश्वरी ॥१॥

नानारत्नविचित्रभूषणकरी हेमाम्बराडम्बरी
मुक्ताहारविलम्बमानविलसद्वक्षोजकुम्भान्तरी ।
काश्मीरागरुवासिताङ्गरुचिरे काशीपुराधीश्वरी
भिक्षां देहि कृपावलम्बनकरी मातान्नपूर्णेश्वरी ॥२॥

योगानन्दकरी रिपुक्षयकरी धर्मार्थनिष्ठाकरी
चन्द्रार्कानलभासमानलहरी त्रैलोक्यरक्षाकरी ।
सर्वैश्वर्यसमस्तवाञ्छितकरी काशीपुराधीश्वरी
भिक्षां देहि कृपावलम्बनकरी मातान्नपूर्णेश्वरी ॥३॥

कैलासाचलकन्दरालयकरी गौरी उमा शङ्करी
कौमारी निगमार्थगोचरकरी ओङ्कारबीजाक्षरी ।
मोक्षद्वारकपाटपाटनकरी काशीपुराधीश्वरी
भिक्षां देहि कृपावलम्बनकरी मातान्नपूर्णेश्वरी ॥४॥

दृश्यादृश्यविभूतिवाहनकरी ब्रह्माण्डभाण्डोदरी
लीलानाटकसूत्रभेदनकरी विज्ञानदीपाङ्कुरी ।
श्रीविश्वेशमनःप्रसादनकरी काशीपुराधीश्वरी
भिक्षां देहि कृपावलम्बनकरी मातान्नपूर्णेश्वरी ॥५॥

उर्वीसर्वजनेश्वरी भगवती मातान्नपूर्णेश्वरी
वेणीनीलसमानकुन्तलहरी नित्यान्नदानेश्वरी ।
सर्वानन्दकरी सदा शुभकरी काशीपुराधीश्वरी
भिक्षां देहि कृपावलम्बनकरी मातान्नपूर्णेश्वरी ॥६॥

आदिक्षान्तसमस्तवर्णनकरी शम्भोस्त्रिभावाकरी
काश्मीरात्रिजलेश्वरी त्रिलहरी नित्याङ्कुरा शर्वरी ।
कामाकाङ्क्षकरी जनोदयकरी काशीपुराधीश्वरी
भिक्षां देहि कृपावलम्बनकरी मातान्नपूर्णेश्वरी ॥७॥

देवी सर्वविचित्ररत्नरचिता दाक्षायणी सुन्दरी
वामं स्वादुपयोधरप्रियकरी सौभाग्यमाहेश्वरी ।
भक्ताभीष्टकरी सदा शुभकरी काशीपुराधीश्वरी
भिक्षां देहि कृपावलम्बनकरी मातान्नपूर्णेश्वरी ॥८॥

चन्द्रार्कानलकोटिकोटिसदृशा चन्द्रांशुबिम्बाधरी
चन्द्रार्काग्निसमानकुन्तलधरी चन्द्रार्कवर्णेश्वरी ।
मालापुस्तकपाशासाङ्कुशधरी काशीपुराधीश्वरी
भिक्षां देहि कृपावलम्बनकरी मातान्नपूर्णेश्वरी ॥९॥

क्षत्रत्राणकरी महाऽभयकरी माता कृपासागरी
साक्षान्मोक्षकरी सदा शिवकरी विश्वेश्वरश्रीधरी ।
दक्षाक्रन्दकरी निरामयकरी काशीपुराधीश्वरी
भिक्षां देहि कृपावलम्बनकरी मातान्नपूर्णेश्वरी ॥१०॥

अन्नपूर्णे सदापूर्णे शङ्करप्राणवल्लभे ।
ज्ञानवैराग्यसिद्ध्यर्थं भिक्षां देहि च पार्वति ॥११॥

माता च पार्वती देवी पिता देवो महेश्वरः ।
बान्धवाः शिवभक्ताश्च स्वदेशो भुवनत्रयम् ॥१२॥

- श्री शङ्कराचार्य कृतं

Panchagni vidyā | पंचाग्नि विद्या


पंचाग्नि विद्या

पंचाग्नि विद्या का उद्देश्य, हिंदू धर्म में पांच आग पर ध्यान, सांसारिक जीवन के लिए तीव्र वैराग्य विकसित करना और लोगों का ध्यान मोक्ष या मुक्ति की ओर मोड़ना है। छांदोग्य उपनिषद अध्याय V में पंचाग्नि विद्या का उल्लेख है। इसे जिवाला के पुत्र राजा प्रवाहण ने अपने शिष्य श्वेतकेतु को पढ़ाया था।

प्रतीकात्मक रूप से, पंचाग्नि विद्या व्यक्ति को जीवन यात्रा में आने वाली कठिनाइयों के बारे में बताती है। इसलिए जब साधक को मनुष्य रूप प्राप्त हो जाए तो साधक को उसका प्रयोग जन्म मरण के चक्र से बचने के लिए करना चाहिए।

पंचाग्नि विद्या पौराणिक कथाओं के अनुसार भगवान शिव की पत्नी पार्वती ने पहली बार शिव तत्व, कुल मुक्ति प्राप्त करने के लिए किया था। 

पंचाग्नि विद्या में पाँच अग्नि (अग्नि) हैं:

• स्वर्ग 

• वर्षा देवता 

• धरती 

• नर 

• महिला

हिंदू धार्मिक शिक्षाओं के अनुसार, वैराग्य मुक्ति के प्रभावी साधनों में से एक है - दुख और दुख से मुक्ति। 

पृथ्वी पर आनंद प्राप्त करने के लिए दुनिया में एक शरीर में जन्म के दर्द और खतरों के बारे में लगातार सोचने की जरूरत है।

पंचाग्नि विद्या जन्म और मृत्यु के समय होने वाले दुखों की गहराई से शिक्षा देती है। पांच अग्नियों का ध्यान एक साधक में वैराग्य की भावना उत्पन्न करता है।

मान्यता है कि पंच अग्नियों को पांच द्रव्य आहुति दी जाती है

• स्वर्ग के प्रति आस्था 

• सोम वर्षा देवता 

• पृथ्वी पर वर्षा

• मनुष्य को भोजन

• महिला को वीर्य द्रव

स्त्री के गर्भ में पंचम आहुति देने पर स्वयं को शरीर प्राप्त होता है।

एक आत्मा जो अच्छे कर्मों के बल पर स्वर्गीय दुनिया में चढ़ गई है, उस पुण्य की थकावट पर पृथ्वी पर एक और जीवन लेने के लिए, स्वर्ग से बारिश के रूप में उतरती है।वहाँ पृथ्वी में, स्वयं एक पौधे पर उगने वाले अनाज में प्रवेश करता है और फिर उस नर के रक्त में प्रवेश करता है जो उस खाद्यान्न को खाता है जो शुक्राणु में बदल जाता है। अन्त में, जब वीर्य स्त्राव सहवास के समय स्त्री के गर्भ में प्रवेश करता है, तो उसके साथ आत्मा भी गर्भ में प्रवेश करती है। गर्भ में यह सन्निहित हो जाता है।

यह सब दिखाता है कि गर्भ तक जाने की यात्रा कितनी कठिन और दर्दनाक है, खासकर जब अनाज काटा जाता है, सुखाया जाता है, उबाला जाता है, उबाला जाता है, खाया जाता है, दांतों से कुचला जाता है, पाचक तरल पदार्थों में मिलाया जाता है, पाचन अग्नि द्वारा जलाया जाता है - अंत में माता के गर्भ में नौ महीने के कष्टदायक प्रवास में प्रवेश करें।

Tuesday, 7 February 2023

Srividya: Tithi Nitya Devi | तिथि नित्य देवी


तिथि नित्य देवी

श्री ललिता की पूजा श्री विद्या उपासना का अंग है। श्री ललिता आद्या शक्ति हैं जो सत, आनंद और पूर्णा हैं - सदानंदपूर्णा। उसके चारों ओर 15 अंग देवता या अवतार देवता हैं जिन्हें नित्य देवी कहा जाता है। ये नित्य देवियाँ अपने 15 गुणों के साथ पाँच मूल तत्वों, यानी पंच भूतों का प्रतिनिधित्व करती हैं। प्रत्येक पंचभूत / तत्व में सत्व, रजस और तमो गुण होते हैं और इसलिए यह 15 है। इन पञ्चभूत (पंचतत्व या पंचमहाभूत) भारतीय दर्शन में सभी पदार्थों के मूल माने गए हैं। आकाश, वायु, अग्नि, जल तथा पृथ्वी - ये पंचमहाभूत माने गए हैं जिनसे सृष्टि का प्रत्येक पदार्थ बना है। लेकिन इनसे बने पदार्थ जड़ (यानि निर्जीव) होते हैं, सजीव बनने के लिए इनको आत्मा चाहिए। इन सभी का योग 15 होता है।

कामेश्वरी के ध्यानश्लोक में और अन्य सभी नित्य देवियों में भी यह उल्लेख किया गया है कि वह कामेश्वरी नित्य के समान ही शक्ति देवताओं से घिरी हुई है। शक्ति देवता हैं - मदन उनमादन, दीपन, मोहना, शोशना, अनंगकुसुमा, अनंग मेखला, अनंगमदाना, अनंग मदनतुरा, अनंग रेखा (गगन रेखा) अनंग वेगिनी (मदा वेजिनी) अनंग कुशा (शशिरखा) अनंग मालिनी (भुआवना पाल) श्रद्धा, प्रीति, रति, धृति, कांति, मनोरमा, मनोहरा, मनोरथा, मदनोनमदिनी, मोहिनी, दीपानी, शोशिनी वाशंकरी, सिंजिनी, सुभागा, प्रियदर्शना।

फिर शक्ति देवता भी चंद्रमा की 16 कलाएँ हैं जिनके नाम पूषा, अवेश, श्रीमानस, रति, प्रीति, धृति, बुद्धि, सौम्या, मरीचि, अंशुमेलिनी, शशिनी, अंगिरा, छाया, संपूर्ण मंडल, तुष्टि और अमृता हैं। फिर डाकिनी, राकिनी, लकिनी, काकिनी, साकिनी, हकिनी, याकिनी। अंत में बटुक, गणपा, दुर्गा और क्षेत्रेश।

एक बार जब हम कामेश्वरी नित्य की पूजा कर लेते हैं, तो हम एक साथ इन सभी शक्ति देवताओं की पूजा कर रहे होंगे।

कामेश्वरी, कामेश्वर की पत्नी जो श्री ललिता महा त्रिपुर सुंदरी के अलावा कोई नहीं है।

15 तिथि नित्य देवी के नाम:

कामेश्वरी, भगमालिनी, नित्यक्लिन्ना, भेरुंडा, वाहनवासिनी, महावज्रेश्वरी, शिवदुति, त्वरित, कुलसुंदरी, नित्या, नीलपटक, विजया, सर्वमंगला, ज्वालामालिनी, चित्रा। और 16वीं महानित्य श्री ललिता महात्रिपुरा सुंदरी हैं।

तिथि नित्य देवी पूजा श्री विद्या सपर्य पद्धति में वर्णित श्री चक्र नववर्ण पूजा का हिस्सा है। इन तिथि नित्य देवियों के लिए एक विस्तृत और विशेष पूजा भी है, उन्हें त्रिकोण के चारों ओर संलग्न चित्र में दिखाया गया है और प्रत्येक नित्य को पंच पूजा / षोडशोपचार पूजा / चतुहयष्टि उपचार पूजा की पेशकश की जाती है।

कैसे किया जाता है 
पूजा?

एक बड़ा त्रिभुज बनाया जाता है और उसके चारों ओर जैसा कि चित्र में दिखाया गया है, प्रत्येक नित्य के यंत्र बनाए जाते हैं। त्रिभुज के मध्य में श्री चक्र बना हुआ है।प्रत्येक नित्य को उपाचारों के साथ उनके मंत्रों और ध्यानश्लोक के साथ-साथ प्रत्येक नित्य को श्री सूक्त के एक श्लोक के साथ पूजा की जाती है और इस प्रकार 15 सूक्त से 15 नित्य तक और फिर से श्री चक्र को पूर्ण श्री सूक्त त्रिभुज के अंदर खींचा जाता है। फिर कामेश्वरी से शुरू होने वाली प्रत्येक नित्य की त्रिशती या ललिता रुद्र त्रिशती में पहले 20 नामों से पूजा करें। जब तक सभी 15 नित्यों की पूजा की जाती है तब तक लैता त्रिशती / ललिता रुद्र त्रिशती पूरी हो जाती है। तत्पश्चात पुनः पूर्ण ललिता त्रिशती/ललिता रुद्र त्रिशती से त्रिकोण के अंदर स्थित श्री चक्र की पूजा की जाती है। अंत में आरती, प्रार्थना और क्षमाप्रार्थना के साथ पूजा संपन्न होती है। पूजा के बाद सुवासिनी पूजा, कुमारी पूजा, वटुका पूजा भी की जाती है।

Friday, 3 February 2023

Shiva Natraj Stuti

शिव नटराज स्तुति – Shiva Natraj Stuti

नटराज स्तुति

सत सृष्टि तांडव रचयिता
नटराज राज नमो नमः l
हे आद्य गुरु शंकर पिता
नटराज राज नमो नमः ll

गंभीर नाद मृदंगना 
धबके उरे ब्रह्माडना l
नित होत नाद प्रचंडना
नटराज राज नमो नमः ll

शिर ज्ञान गंगा चंद्रमा 
चिद्ब्रह्म ज्योति ललाट मां l
विषनाग माला कंठ मां
नटराज राज नमो नमः ll

तवशक्ति वामांगे स्थिता 
हे चंद्रिका अपराजिता l
चहु वेद गाए संहिता
नटराज राज नमोः ll

Thursday, 2 February 2023

Lalitha Jayanti


ललिता जयंती: श्री ललितात्रिपुरसुंदरी की पूजा के लिए शुभ दिन l
माता ललिता को समर्पित, यह ललिता जयंती हर साल माघ मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा के दिन मनाई जाती है। इस वर्ष यह 5 फरवरी 2023 को है। इस दिन मां ललिता की पूरे विधि-विधान से पूजा की जाती है।  शास्त्रों के अनुसार माता ललिता को दस महाविद्याओं में तीसरी महाविद्या माना जाता है। ललिता जयंती पूरे विधि-विधान से की जाए तो माता ललिता प्रसन्न होकर व्यक्ति को जीवन में सुख-समृद्धि का आशीर्वाद देती हैं।

ललिता जयंती क्यों मनाई जाती है?
इस दिन देवी ललिता की पूजा करने से भक्तों को मोक्ष की प्राप्ति होती है। माता ललिता की पूरी श्रद्धा से पूजा करने से व्यक्ति जन्म मरण के चक्र से मुक्त हो जाता है।  इसलिए ललिता जयंती पर देवी ललिता की बड़ी श्रद्धा से पूजा की जाती है।

ललिता जयंती का महत्व:
देवी ललिता, जो पंच महाभूतों, या पांच तत्वों से जुड़ी हैं, ललिता जयंती पर सम्मानित की जाती हैं। लोगों का मानना है कि देवी ललिता पांच तत्वों का रूप या प्रतीक हैं: पृथ्वी, जल, वायु, अग्नि और अंतरिक्ष।

कहा जाता है कि माता ललिता की पूजा करने से सभी प्रकार की सिद्धियों की प्राप्ति होती है। मां ललिता को
राजराजेश्वरी, कामाक्षी, मीनाक्षी, षोडशी, त्रिपुर सुंदरी आदि नामों से भी जाना जाता है।

ललिता पंचमी पूजन सामग्री:
ललिता पंचमी की पूजा के लिए- कुमकुम, अक्षत, हल्दी, चंदन, अबीर, गुलाल, दीपक, घी, इत्र, पुष्प, दूध, जल, फल, मेवा, मौली, आसन, तांबे का लोटा, नारियल, इत्यादि चीजों को एकत्रित करके रख लें।

पूजन विधि:
मां ललिता की पूजा करना चाहते हैं तो इस दिन सूर्योदय से पहले उठकर स्नानादि कर लें और सफेद रंग के वस्त्र धारण करें।
इसके बाद एक चौकी लें और उस पर गंगाजल छिड़कें और स्वंय उतर दिशा की और बैठ जाएं फिर चौकी पर सफेद रंग का कपड़ा बिछाएं। 

चौकी पर कपड़ा बिछाने के बाद मां ललिता की तस्वीर स्थापित करें। यदि आपको तस्वीर न मिले तो आप श्री यंत्र भी स्थापित कर सकते हैं।

इसके बाद मां ललिता का कुमकुम से तिलक करें और उन्हें अक्षत, फल, फूल, दूध से बना प्रसाद या खीर अर्पित करें। 

यह सभी चीजें अर्पित करने के बाद मां ललिता की विधिवत पूजा करें और ॐ ऐं ह्रीं श्रीं त्रिपुर सुंदरीयै नमः॥ मंत्र का जाप करें। श्रीयंत्र पर कुमकुम चढ़ाएं और ललितासहस्रनाम/ललितात्रिशती/खड़गमाला स्तोत्र का जाप करें l

इसके बाद मां ललिता की कथा सुनें या पढ़ें। 
कथा पढ़ने के बाद मां ललिता की धूप व दीप से आरती उतारें। 

इसके बाद मां ललिता को सफेद रंग की मिठाई या खीर का भोग लगाएं और माता से पूजा में हुई किसी भी भूल के लिए क्षमा मांगें। 

ललिता देवी का प्रादुर्भाव कथा:
पौराणिक कथा के अनुसार, सतयुग में किसी समय एक बार मुनियों के एक समूह ने यज्ञ आयोजित किया l यज्ञ में सभी देवताओं को बुलाया गया था l जब राजा दक्ष आए तो सभी लोग खड़े हो गए लेकिन भगवान शिव खड़े नहीं हुए l भगवान शिव दक्ष के दामाद थे l

यह देख कर राजा दक्ष बेहद क्रोधित हुए l अपने इस अपमान का बदला लेने के लिए सती के पिता राजा प्रजापति दक्ष ने भी एक यज्ञ का आयोजन किया l

राजा प्रजापति दक्ष (जो भगवान ब्रह्मा के पुत्र थे) ने कंकण (बर्तमान कनखल) नामक स्थान (हरिद्वार) में एक यज्ञ किया था, इस यज्ञ का नाम वृहस्पति यज्ञ था। उन्होंने भगवान शिव से बदला लेने की इच्छा से यह यज्ञ किया था। दक्ष क्रोधित थे क्योंकि उनकी बेटी सती (उनकी 27 बेटियों में से एक) ने उनकी इच्छा के विरुद्ध 'योगी भगवान शिव' से विवाह किया था। 

उस यज्ञ में ब्रह्मा, विष्णु, इंद्र और अन्य देवी-देवताओं को आमंत्रित किया, लेकिन उन्होंने जान-बूझकर अपने जमाता भगवान शिव को इस यज्ञ का निमंत्रण नहीं भेजा l

देवर्षि नारद जी ने देवी सती को बताया कि आपकी सब बहनें यज्ञ में आमंत्रित हैं, अतः आपको भी वहां जाना चाहिये। पहले तो देवी सती ने मन में कुछ देर विचार किया, फिर वहां जाने का निश्चय किया। जब देवी सती ने भगवान शिव से उस यज्ञ में जाने की अनुमति मांगी तो भगवान शिव ने वहां जाना अनुचित बताकर उन्हें जाने से रोका, पर देवी सती अपने निश्चय पर अटल रहीं।

वह बोलीं मैं प्रजापति के यज्ञ में अवश्य जाऊँगी और वहां पहुंच कर या तो अपने प्राणेश्वर देवाधिदेव के लिये यज्ञ में भाग प्राप्त करूँगी या यज्ञ को ही नष्ट कर दूंगी "प्राप्सयामि यज्ञभागं वा नाशयिष्यामि वा मुखम्" l

ऐसा कहते हुए देवी सती के नेत्र लाल हो गये। उनके अधर फड़कने लगे जो कृष्ण वर्ण के हो गए । क्रोध अग्नि से उददीप्त शरीर महा भयानक एवं उग्र दीखने लगा। उस समय महामाया का विग्रह प्रचण्ड तेज से तमतमा रहा था।

शरीर वृद्धावस्था को प्राप्त-सा हो गया। उनकी केश राशि बिखरी हुई थी, चार भुजाओं से सुशोभित वह महादेवी पराक्रम की वर्षा करती सी प्रतीत हो रही थीं।

काल अग्नि के समान महा भयानक रूप में देवी मुण्ड माला पहने हुई थीं और उनकी भयानक जिहृा बाहर निकली हुई थी, सिर पर अर्धचन्द्र सुशोभित था और उनका सम्पूर्ण विग्रह विकराल लग रहा था। वह बार – बार भीषण हुंकार कर रही थीं।

इस प्रकार अपने तेज से देदीप्यमान एवं अति भयानक रूप धारण कर महादेवी सती घोर गर्जना के साथ अटटहास करती हुई भगवान शिव के समक्ष खड़ी हो गयीं। देवी का यह भीषणतम स्वरूप साक्षात महादेव के लिये भी असहनीय हो गया।

भगवान शिव का धैर्य जाता रहा। उनका वह रूप असहनीय होने से शंकर जी वहां से हट गए और सभी दिशाओं में इधर – उधर गति करने लगे। देवी ने उन्हें ‘रुक जाइये’, ‘मत जाइये’ कई बार कहा, किंतु शिव एक क्षण भी वहां नहीं रूके।

इस प्रकार अपने स्वामी को विचलित देख कर दयावती भगवती सती ने उन्हें रोकने की इच्छा से क्षण भर में अपने ही शरीर से अपनी अंगभूता दस देवियों को प्रकट कर दिया, जो दसों दिशाओं में उनके समक्ष स्थित हो गयीं। भगवान शिव जिस – जिस दिशा में जाते थे, भगवती का एक एक विग्रह उनका मार्ग अवरूद्ध कर देता था।

देवी की ये स्वरूपा शक्तियाँ ही दस महाविद्याएँ हैं, इनके नाम हैं – काली, तारा, त्रिपुरसुंदरी, भुवनेश्वरी, छिन्नमस्ता, त्रिपुरभैरवी, धूमावती, बगलामुखी, मातंगी और कमला।

जब भगवान शिव ने इन महाविद्याओं का परिचय पूछा तो देवी बोलीं – कृष्ण वर्णा तथा भयानक नेत्रों वाली ये जो देवी आपके सामने स्थित हैं, वह भगवती ‘काली’ हैं और जो यह श्याम वर्ण वाली देवी आपके ऊर्ध्व भाग में विराजमान हैं, वह साक्षात महाकाल स्वरूपिणी महाविद्या ‘तारा’ हैं।

महामते! आपके दाहिनी ओर वह जो भयदायिनी तथा मस्तक विहीन देवी विराजमान हैं, वह महाविद्या स्वरूपिणी भगवती ‘छिन्नमस्ता’ हैं। शम्भो! आपके बायीं ओर यह जो देवी हैं, वह भगवती ‘भुवनेश्वरी’ हैं।

जो देवी आपके पीछे स्थित हैं, वह शत्रुनाशिनी भगवती ‘बगला’ हैं। विधवा का रूप धारण की हुई यह जो देवी आपके अग्नि कोण में विराजमान हैं, वह महाविद्या स्वरूपिणी महेश्वरी ‘धूमावती’ हैं और आपके नैर्ऋत्यकोण में ये जो देवी हैं, वह भगवती (ललिता) 'त्रिपुरसुंदरी’ हैं।

आपके वायव्यकोण में जो देवी हैं, वह मातङ्ग कन्या महाविद्या ‘मातङ्गी’ हैं और आपके ईशान कोण में जो देवी स्थित हैं, वह महाविधा स्वरूपिणी महेश्वरी ‘षोडशी’ हैं।
और मैं खुद भैरवी रूप में अभयदान देने के लिए आपके सामने खड़ी हूं।' यही दस महाविद्या अर्थात् दस शक्ति है।

बाद में मां ने अपनी इन्हीं शक्तियां का उपयोग दैत्यों और राक्षसों का वध करने के लिए किया था।

प्रवृति के अनुसार दस महाविद्या के तीन समूह हैं।

पहला : - सौम्य कोटि (त्रिपुर सुंदरी, भुवनेश्वरी, मातंगी, कमला),
दूसरा : - उग्र कोटि (काली, छिन्नमस्ता, धूमावती, बगलामुखी),
तीसरा : - सौम्य-उग्र कोटि (तारा और त्रिपुर भैरवी)।

यह सभी रूप भगवती के अन्य समस्त रूपों से उत्कृष्ट हुईं हैं। ये देवियाँ नित्य भक्तिपूर्वक उपासना करने वाले साधक पुरूषों को चारों प्रकार के पुरूषार्थ ( धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष ) तथा समस्त वांछित फल प्रदान करती हैं।

शिव ने अंततः उन्हें अपने गणों के साथ वृहस्पति यज्ञ में
जाने की अनुमति दी।

लेकिन बिन बुलाए मेहमान होने के कारण सती को उनके पिता ने कोई सम्मान नहीं दिया। और भी, दक्ष ने शिव का अपमान किया। सती अपने पति के प्रति अपने पिता के अपमान को सहन करने में असमर्थ थीं, इसलिए उन्होंने यज्ञ-कुंड में कूदकर अपनी प्राणाहुति दे दी l

भगवान शंकर को जब यह पता चला तो क्रोध से उनका तीसरा नेत्र खुल गया l ब्रम्हाण्ड में प्रलय व हाहाकार मच गया l वह अपने गणों (अनुयायियों) के साथ उस स्थान पर गए जहाँ दक्ष अपना हवन कर रहे थे।
शिव जी के आदेश पर वीरभद्र ने दक्ष का सिर काट दिया और अन्य देवताओं को शिव निंदा सुनने की भी सजा दी l भगवान शंकर ने यज्ञकुंड से सती के पार्थिव शरीर को निकाल कंधे पर उठा लिये और दुःखी होकर सारे भूमंडल में घूमने लगे l

भगवती सती ने शिवजी को दर्शन दिए और कहा कि जिस-जिस स्थान पर उनके शरीर के अंग अलग होकर गिरेंगे, वहां महाशक्तिपीठ का उदय होगा सती का शव लेकर शिव पृथ्वी पर घूमते हुए तांडव भी करने लगे, जिससे पृथ्वी पर प्रलय की स्थिति उत्पन्न होने लगी l पृथ्वी समेत तीनों लोकों को व्याकुल देखकर भगवान विष्णु अपने सुदर्शन चक्र से सती के शरीर को खंड-खंड कर धरती पर गिराते गए l जब-जब शिव नृत्य मुद्रा में पैर पटकते, विष्णु अपने चक्र से माता के शरीर का कोई अंग काटकर उसके टुकड़े पृथ्वी पर गिरा देते l
शरीर के विभिन्न भाग पूरे भारतीय उपमहाद्वीप में कई स्थानों पर गिरे और उन स्थानों का निर्माण किया जिन्हें शक्तिपीठ के रूप में जाना जाता है।

आप अपने और अपने प्रियजनों के लिए श्री यंत्र पूजा और ललिततासहस्रनाम जाप के लिए 
"देवी शक्ति पीठ" में अनुरोध कर कर सकते हैं l







Jay Ram Rama Ramanam Shamanam

जय राम रमारमनं समनं    यह स्तुति भगवान शिव द्वारा प्रभु राम के अयोध्या वापस आने के उपलक्ष्य में गाई गई है। जिसके अंतर्गत सभी ऋ...